(पाठ्यपुस्तक से)
  प्रश्न 1.
  हमारी आजादी की लड़ाई में समाज के उपेक्षित माने जाने वाले वर्ग का योगदान भी कम
  नहीं रहा है। इस कहानी में लोगों के योगदान को लेखक ने किस प्रकार उभारा है?
  उत्तर
  यद्यपि हमारी आजादी की लड़ाई में सभी वर्गों का योगदान रहा है। उनमें समाज में
  उपेक्षित समझे जाने वाले वर्ग का भी योगदान कम नहीं रहा। पाठ के पात्र टुन्नू और
  दुलारी दोनों ही कजली गायक हैं। दोनों ने आजादी के समय आंदोलन में अपनी सामर्थ्य
  के अनुसार भरपूर योगदान दिया है।
टुन्नू : टुन्नू सोलह-सत्रह वर्ष का संगीत प्रेमी बालक है। वह खद्दर का कुर्ता पहनता था और सिर पर गाँधी टोपी लगाता था। उसने दुलारी को भी गाँधी आश्रम में बनी खद्दर की साड़ी उपहार स्वरूप दी थी, वह विदेशी वस्त्रों के बहिष्कार करने वालों के जुलूस में शामिल था जहाँ उसे अली सगीर ने अपने बूट से ऐसी ठोकर मारी कि वह अपनी जान से हाथ धो बैठा। इस तरह उसने अपना बलिदान दे दिया।
दुलारी : दुलारी भी टुन्नू की तरह कजली गायिका है। विदेशी वस्त्रों का संग्रह करने वाली टोली को चादर, कोरी धोतियों का बंडल दे देती है। वह टुन्नू दूद्वारा दी गई गाँधी आश्रम की धोती को सगर्व पहनती है। वह पुलिस के मुखबिर फेंकू की झाड़ से पिटाई करती है। लेखक ने इस तरह समाज से उपेक्षित लोगों के योगदान को स्वतंत्रता के आंदोलन में महत्त्वपूर्ण माना है।
  प्रश्न 2.
  कठोर हृदयी समझी जाने वाली दुलारी टुन्नू की मृत्यु पर क्यों विचलित हो उटी?
  उत्तर
  दुलारी समाज के उपेक्षित वर्ग से संबंध रखने वाली कजली गायिका थी। समाज के कुछ
  लोगों की लोलुप नज़रों से बचने के लिए उसका कठोर हृदयी होना भी आवश्यक था। इसके
  अलावा समय और समाज के थपेड़ों ने भी दुलारी को कठोर बना दिया। इसी बीच टुन्नू से
  मुलाकात, उसकी देशभक्ति और उसके निश्चल प्रेम ने दुलारी के हृदय की कठोरता को
  करुणा में बदलने पर विवश कर दिया। दुलारी ने जान लिया था कि टुन्नू का प्रेम उसकी
  आत्मा से है, शरीर से नहीं। दुलारी अपने प्रति टुन्नू के प्रेम से अनभिज्ञ नहीं
  थी, इसलिए कठोर हृदयी दुलारी उसकी मृत्यु पर विचलित हो उठी।
  प्रश्न 3.
  कजली दंगल जैसी गतिविधियों का आयोजन क्यों हुआ करता होगा? कुछ परंपरागत लोक
  आयोजनों का उल्लेख कीजिए?
  उत्तर
  कजली गन्न भी अन्य मनोरंजक आयोजनों की तरह होता है। इसमें दो टन इकटे होकर
  गायन-प्रतियोगिता करते हैं और अलग-अलग भावों में व्यंग्य-शैली अपनाते हुए
  एक-दूसरे के सवालों का जवाब देने के साथ प्रश्न भी कर देते हैं। यह सिलसिला काफी
  देर तक चलता रहता है। वाह-वाह करने के लिए दोनों दलों के साथ संगतकार होते हैं।
  स्वतंत्रता से पहले लोगों में देश-प्रेम की भावना उत्पन्न करना, लोगों को
  उत्साहित रना, प्रचार करना इन दंगलों के मुख्य कार्य थे।
  कजली दंगल की तरह समाज में कई अन्य प्रकार के दंगल किए जाते हैं; जैसे-
- रसिया-दंगल : यह ब्रज-क्षेत्र में अधिक प्रचलित है।
- रागिनी-दंगल : यह पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में अधिक प्रचलित है।
- संकीर्तन-दंगल : जहाँ-तहाँ संपूर्ण भारत में इसकी परंपरा है।।
- पहलवानों का कुश्ती-दंगल : यह दंगल भी संपूर्ण भारत में होता है।
  प्रश्न 4.
  दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक, सांस्कृतिक दायरे से बाहर है फिर भी अति
  विशिष्ट है। इस कथन को ध्यान में रखते हुए दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ
  लिखिए।
  उत्तर
 दुलारी विशिष्ट कहे जाने वाले सामाजिक-सांस्कृतिक
  दायरे से बाहर है फिर भी अपनी विशिष्टताओं जैसे-कजली गायन में निपुणता, देशभक्ति
  की भावना, विदेशी वस्त्रों का त्याग करने जैसे कार्यों से अति विशिष्ट बन जाती
  है। दुलारी की चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- कजली गायन में निपुणता-दुलारी दुक्कड़ पर कजली गायन की जानी पहचानी गायिका है। वह गायन में इतनी कुशल है कि अन्य गायक उसका मुकाबला करने से डरते हैं। वह जिस पक्ष में गायन के लिए खड़ी होती है, वह पक्ष अपनी जीत सुनिश्चित मानता है।
- स्वाभिमानी-दुलारी भले ही गौनहारिन परंपरा से संबंधित एवं उपेक्षित वर्ग की नारी है पर उसके मन में स्वाभिमान की उत्कट भावना है। फेंकू सरदार को झाड़ मारते हुए अपनी कोठरी से बाहर निकालना इसका प्रमाण है।
- देशभक्ति तथा राष्ट्रीयता की भावना-दुलारी देशभक्ति एवं राष्ट्रीयता की भावना के कारण विदेशी साड़ियों का बंडल होली जलाने वालों की ओर फेंक देती है।
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    कोमल हृदयी-दुलारी के मन में टुन्नू के लिए जगह बन जाती है। वह टुन्नू से प्रेम
    करने लगती है। टुन्नू के लिए उसके मन में कोमल भावनाएँ हैं।
 इस तरह दुलारी का चरित्र देश-काल के अनुरूप आदर्श है।
  प्रश्न 5.
  दुलारी का टुन्नू से पहली बार परिचय कहाँ और किस प्रकार हुआ?
  उत्तर
  भादों की तीज पर खोजवाँ और बजरडीहा वालों के बीच कजली दंगल हो रहा था। उस समय
  दुक्कड़ पर गाने वालियों में दुलारी की महती ख्याति थी। उसमें पद्य में सवाल-जवाब
  करने की अद्भुत क्षमता थी। खोजवाँ वाले दुलारी के अपनी ओर होने से अपनी जीत के
  लिए आश्वस्त थे। दूसरी ओर बजरडीहा वाले अपनी ओर से टुन्नू को लाए थे। उसने भी
  पद्यात्मक शैली में प्रश्न-उत्तर करने में कुशलता प्राप्त की थी। टुन्नू दुलारी
  की ओर हाथ उठाकर चुनौती के रूप में ललकार उठा। दुलारी मुसकुराती हुई मुग्ध होकर
  सुनती रही। यहीं पर गायक के रूप में दुलारी और टुन्नू का परिचय हुआ।
  प्रश्न 6.
  दुलारी का टुन्नू को यह कहना कहाँ तक उचित था-“तै सरबला बोल जिन्नगी में कब देख
  ले लोट?…” दुलारी के इस आक्षेप में आज के युवावर्ग के लिए क्या संदेश | छिपा है?
  उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
  उत्तर
  कजली की सुप्रसिद्ध गायिका दुलारी को खोजवाँ बाजार में गाने के लिए बुलाया गया
  था। इसी दंगल में जब उसकी गायिकी का जवाब देने टुन्नू नामक एक किशोर उठ खड़ा हुआ
  और अपने गीतों से दुलारी को माकूल जवाब दिया तो दुलारी ने गीत के माध्यम से कहा,
  “तें सरबउला बोल जिन्नगी में कब देखले लोट?..। उसका यह आक्षेप मुख्य रूप से
  टुन्नू के लिए था जिसका बाप घाटों पर पूजा पाठ करके जीवन की गाड़ी खींच रहा था।
  दुलारी के इस कथन में आज के युवाओं के लिए निहित संदेश है-
- युवाओं को अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए गाने बजाने पर नहीं।
- युवा अपनी यथार्थ स्थिति को ध्यान में रखकर ही कल्पना की दुनिया में हुए।
- युवा रचनात्मक कार्यों से विमुख न हों तथा समाजोपयोगी काम करें।
- युवा अपने कार्यों से माता-पिता की प्रतिष्ठा और इज्ज़त दाँव पर न लगाएँ।
  प्रश्न 7.
  भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपना योगदान किस प्रकार
  दिया?
  उत्तर
  भारत के स्वाधीनता आंदोलन में दुलारी और टुन्नू ने अपनी सामर्थ्य और सोच से अधिक
  योगदान दिया । दुलारी एक सामान्य महिला थी। जब देश के दीवानों का दल विदेशी
  वस्त्रों का संग्रह कर रहा था तब दुलारी ने मुँचेस्टर और लंका-शायर के मिलों की
  बनी बारीक सूत की मखमली किनारी वाली नयी कोरी धोतियों के बंडल को अनासक्त भाव से
  फेंक कर आंदोलन में योगदान दिया। देश के दीवानों की टोली में सम्मिलित हुए टुन्नू
  की मृत्यु पर टुन्नू की ही दी हुई गाँधी आश्रम की धोती को पहन कर उसने उसके प्रति
  श्रद्धांजलि अर्पित की।
इसी प्रकार टुन्नू भी देश के दीवारों की टोली में शामिल होकर आंदोलन में अपनी भूमिका निभाता है और अपना बलिदान दे देता है। इस प्रकार उसका बलिदान भी लोगों को देश-प्रेम के लिए प्रेरणा देता है। इस तरह दोनों का योगदान सराहनीय है।
  प्रश्न 8.
  दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। यह प्रेम
  दुलारी को देश-प्रेम तक कैसे पहुँचाता है?
  उत्तर
  दुलारी और टुन्नू के प्रेम के पीछे उनका कलाकार मन और उनकी कला थी। एक ओर दुलारी
  कजली की प्रसिद्ध गायिका थी वहीं टुन्नू भी उभरता हुआ युवा गायक था। दोनों की
  प्रथम मुलाकात कजली दंगल में हुई थी। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से एक दूसरे पर
  जहाँ व्यंग्य किया, वहीं एक-दूसरे का सम्मान भी। टुन्नू के मन में अपने प्रति
  छिपा आकर्षण दुलारी ने महसूस कर लिया था पर यह प्रेम मुखरित न हो सका था। विदेशी
  वस्त्रों के बहिष्कार करने के कारण जब टुन्नू की हत्या कर दी जाती है और यह बात
  दुलारी को पता चलती है तो वह शोक प्रकट करने खादी की सूती साड़ी पहनकर जाती है।
  टुन्नू के प्रति यह प्रेम इस तरह देश प्रेम में बदल जाता है।
  प्रश्न 9.
  जलाए जाने वाले विदेशी वस्त्रों के ढेर में अधिकांश वस्त्र फटे-पुराने थे परंतु
  दुलारी द्वारा विदेशी मिलों में बनी कोरी साड़ियों को फेंका जाना उसकी किस
  मानसिकता को दर्शाता
  उत्तर
  आज़ादी के दीवानों की एक टोली जलाने के लिए विदेशी वस्त्रों का संग्रह कर रही थी।
  अधिकतर लोग फटे-पुराने वस्त्र फेंक रहे थे। उनमें देश-प्रेम कम दिखावे का भाव
  अधिक था, किंतु बिना किसी मोह के विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करते हुए दुलारी ने
  विदेश की बनी उन साड़ियों को फेंक दिया जिनकी अभी तह तक नहीं खुली थी। उसके मन
  में देश-प्रेम की भावना पूर्णरूपेण अपनी जगह बना चुकी थी। उसका विदेशी वस्त्रों
  के प्रति मोह समाप्त हो चुका था। जिस रास्ते पर टुन्नू चल रहा था उस पर चलकर
  उसने टुन्नू के प्रति आत्मीय स्नेह को स्पष्ट किया।
  प्रश्न 10.
  “मन पर किसी का बस नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता।” टुन्नू के इस | कथन
  में उसका दुलारी के प्रति किशोर जनित प्रेम व्यक्त हुआ है, परंतु उसके विवेक ने
  उसके प्रेम को किस दिशा की ओर मोड़ा?
  उत्तर
  टुन्नू का यह कहना, ‘मन पर किसी का वश नहीं, वह रूप या उमर का कायल नहीं होता”
  उसके मन की उन कोमल भावनाओं की अभिव्यक्ति है जो दुलारी के प्रति है। दुलारी भी
  इस निश्छल प्रेम को महसूस करती है तथा समझ जाती है कि टुन्नू का यह प्रेम शारीरिक
  न होकर मानसिक है, पर दुलारी द्वारा सकारात्मक जवाब न पाकर टुन्नू सूती धोतियाँ
  दुलारी को देकर उस दल में शामिल हो जाता है जो विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार करने
  तथा उनकी होली जलाने के लिए गली-गली घूमकर उनका संग्रह कर रहा था। इस प्रकार उसके
  विवेक ने उसके प्रेम को देश प्रेम की ओर मोड़ दिया।
  प्रश्न 11.
  ‘एही टैयाँ झुलनी हेरानी हो रामा!’ का प्रतीकार्थ समझाइए।
  उत्तर
  इसी जगह पर मेरी नाक की झुलनी (लौंग) खो गई है-यह इसका शाब्दिक अर्थ है। दुलारी
  स्पष्ट करती है कि थाने आकर मेरी नाक की लौंग खो गई–अर्थात मेरी प्रतिष्ठा जाती
  रही। थाने में दुलारी को बुलाकर उसकी इच्छा के विपरीत गाने के लिए विवश किया गया
  था। इस तरह वह अपनी प्रतिष्ठा का खोना मानती है।
दुलारी टुन्नू को अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार कर चुकी थी जिसे वहीं अली सगीर ने बूट की ठोकर मारी थी और वह उस चोट से वहाँ गिरकर मर गया था। इसलिए दूसरा अर्थ है कि मेरी नाक की लौंग, यानी मेरा सुहाग (टुन्नू) यहीं पर मार दिया गया है। अर्थात् मेरी सबसे प्रिय चीज़ यहीं कहीं खो गई है।
